Takshila Lecture on Education
बहुत कम लोग जानते हैं कि मरिया मोंटेसरी पेशे से, न उन्होंने बी.एड. करा था न एम.एड. करा था। शिक्षा में कोई डिग्री नहीं थी। पहली इटली की मेडिकल डॉक्टर थीं – मरिया मोंटेसरी।
मोंटेसरी ने तमाम टीचिंग ऐड्स बनाईं, उसमें से एक टीचिंग ऐड आज भी इस्तेमाल करते हैं, जिसको कहते हैं – पोस्ट बॉक्स। एक तरफ़ ये गोला कटा है और बच्चों को उसके अन्दर एक गेंद पोस्ट करनी पड़ती है। एक तरफ़ ये तिकोण बना है, बच्चों को इसमें एक प्रिज़्म डालना होता है। कि दो आर में इसमें, इसमें कट लगे हैं और आपको एक थ्री-डाइमेंशनल ऑब्जेक्ट उसके अन्दर पोस्ट करना है। ये पोस्ट बॉक्स के बहुत से वरियेशन हम आज भी इस्तेमाल करते हैं।
एक चार बरस की बच्ची थी जो पोस्ट बॉक्स के अन्दर बिल्कुल रत थी। कौन-सा गुटका कौन-से खाँचे में जाएगा। मोंटेसरी दिखाना...तो मोंटेसरी ने बाकी बच्चों से कहा कि इसके चारों एक गोला बनाओ और एक गाना गाओ कि जिससे इसके विचारों के अन्दर कुछ विघ्न पड़े। पर वो बच्ची अपने दुनिया के अन्दर इतनी खोई थी कि उसने सिर उठा कर भी नहीं देखा। गाना गाते रहे। फिर मोंटेसरी ने उसको उठाया और एक मेज़ पर रखा और फिर वो बच्ची अपनी दुनिया के अन्दर रत हो गई। कौन-सा गुटका कौन-से खाँचे में जाएगा।
उस दिन ये पादरी एक बिस्कुट का डिब्बा लाए थे और सब बच्चों को बिस्कुट दे रहे थे। उन्होंने इस बच्ची को भी बिस्कुट दिया। उसने अनमने भाव से बिस्कुट लिया, देखा कि आयताकार है उसको आयताकार खाँचे के अन्दर डाल दिया। सौ बरस पहले मोंटेसरी ने एक तो दिखाया कि बच्चे घूस से, लालच से, टॉफी से, लॉलीपॉप से, तमगों से, मेडल से, सर्टीफ़िकेट से, स्टार से नहीं सीखते। ये बेमानी हैं, ये नीरस हैं।
बच्चे दुनिया में नए होते हैं। तीस साल पहले जब मैं उनके पास गया तो तीस बच्चों की किट एक लाख रुपए की थी। तीस साल पहले की बात है। आज तो कई लाख होंगे उसके। अच्छे से अच्छे स्कूल उस समय अफ़ोर्ड नहीं कर सकते थे। मुझे लगा ये सब बेमानी है। ये चप्पल जो है ये एक बहुत बड़ा गिफ्ट है शिक्षा के लिए। क्यूँकि इसको हम पाँच मिनट में काट सकते हैं, इस चप्पल को। एक अच्छी बात यह है कि अगर आप लकड़ी को काटते हैं तो उसमें बुरादा निकल जाता है, तो जितने गुटके हैं वो लूज़ फिट होते हैं, तो आपको नीचे एक बैकअप प्लेट लगानी पड़ती है। रबर को आप मोची की राकी से काटते हैं तो ये गुटका है। अब कोई अंध बच्चा है तो इसको इस तरह से महसूस कर सकता है।
देखिये हमलोगों ने तीस साल पहले एक नेशनल असोसिएशन फ़ॉर द ब्लाइंड करके एक संस्था है जो अंध बच्चों के लिए काम करती है। तो उनका एक कॉम्पटीशन था कि डिज़ाइन टीचिंग ऐड्स फ़ॉर प्री-स्कूल चिल्ड्रेन। हमलोगों ने चालीस खिलौने सिर्फ चप्पलों के बनाए हैं। ये बहुत ही अच्छे, कोई, किसी में कोई शार्प एज नहीं है। बच्चों को चोट नहीं लगती। और जो बच्चे देख सकते हैं, उनको दिखाई देता है कि काला सफ़ेद के ऊपर है, सफ़ेद काले के ऊपर और ये रिलीफ़ के अन्दर स्कैन करते हैं तो एक अनुभूति होती है कि इसकी आकृति क्या है।
विज्ञान के अन्दर रटना, हम बच्चों को रटवाते हैं वो ठीक नहीं है क्योंकि ये हमारा मस्तिष्क बहुत ही बेशकीमती है। इसको हम बेफ़ालतू की जानकारी ठूँसते हैं इसके अन्दर और बच्चे को कुछ कहते हैं कि उलटें। विज्ञानं का मतलब है कि बच्चे कोई सूत्र देख पाएँ, कॉम्मनैलिटी देख पाएँ, एक पैटर्न देख पाएँ, एक नमूना देख पाएँ, कुछ नया नमूना। ये ज़रूरी है विज्ञानं में, ना कि रटना।
तो ये बहुत ही, हमलोग बहुत छोटे-छोटे से खिलौने बनाते हैं। उसका मैं आपको कुछ...
ये साइकिल की वैल्व ट्यूब है जहाँ हम साइकिल में हवा भरते हैं। छोटा-सा टुकड़ा लेते हैं और उसके अंदर अगर हम माचिस की तीलियों को डालें, दो तीलियों को अगर डालें तो दोनों तीली का मत्था एक-दूसरे से आकर मिल जाता है और ये दो का जोड़ बन जाता है। एक बहुत ही लचीले जोड़ बन जाता है। इससे बच्चों को कोण के बारे में, ये न्युन कोर्ण है, ये नब्बे अंश का कोण है, विशाल कोण है, सरल कोण है, सब। शून्य से लेकर के तीन सौ साठ अंश के सभी कोण हम इसमें दिखा सकते हैं। एक तरह की फ्लेक्सिबल कपलिंग जैसी बन जाती है।
अगर हम तीन को इस्तेमाल करेंगे तो तीन से हम एक त्रिकोण बना सकते हैं। और त्रिकोण क्यूँकि फैक्ट्री में बनी है माचिस की तीली, तो सभी तीलियों कि लम्बाई एक-बराबर है। तो जो अपने-आप बनेगा तो एक समबाहु त्रिकोण बनेगा, ये सारे के सारे कोण साठ अंश के होंगे। तो बच्चों को पहली बार ठोस में साठ अंश कितने होते हैं, इस बात की अनुभूति होती है।
चार से हम एक चौकोण, पंचकोण, षटभुज तमाम तरह की दुआयामी आकृतियाँ बना सकते हैं। इनकी बहुत सुन्दर कुंद धर्म हैं। अगर आप देखें कि ये सब लचीला जोड़ हैं। इसको अगर हम खींचे, षठभुज को, तो एक आयत बन जाता है, ये एक तरीके का पैराललोग्राम बन जाता है। ये अगर इसको देखें तो बिल्कुल अमीबा जैसा है। इसकी बहुत लचीली आकृति है, बाहरी आकृति निरंतर बदल रही है इसके अन्दर। अगर पंचभुज को देखें, इंस्पेक्ट करें तो एक नाव जैसी बन जाती है। ये एक घर जैसा बन जाता है। ये आईसोसिलीज़ ट्रेंगल बन जाता है, दुभाजीय त्रिकोण बन जाता है, दो जिसकी भुजाएँ एक-बराबर हैं। पर ये भी बेहद लचीला है।
ये चौकोण जो है, अभी सारे हमको कोण जो हैं नब्बे अंश के दिखाई दे रहे हैं। इसको भी थोड़ा-सा दबाएँ, तो एक, एक बर्फ़ी जैसा बन जाता है, रौम्बस बन जाता है, अंग्रेज़ी में कहते हैं। पर ये सब-के-सब लचीले हैं। पर अगर आपने एक बच्ची को एक त्रिकोण दिया तो त्रिकोण ही एकमात्र ऐसी आकृति है जो बिल्कुल अडिग है। टस से मस नहीं होती। और ये विज्ञान का, पूरी सिविल इंजीनियरिंग, मेकैनिकल इंजीनियरिंग का ये एक आधार है। जिसको कहते हैं प्रिंसिपल ऑफ़ ट्रेंगुलेशन।
अब इसी के अन्दर हमने काँटे से छेद करा, एक सुईं से छेद करा, एक तीसरी माचिस, तो ये एक टी-जॉइंट बन जाता है, एक तीन का जोड़ बन जाता है। अगर इसी तरह से ये जो त्रिकोण के तीनों वेर्टिसेज़ में हम छेद करके इन तीनों को धँसा सकते हैं तो एक चतुष्ला बन जाता है, टेट्राहेड्रन बन जाता है। अगर आठवीं-नवीं में, नवीं-दसवीं में बच्चे केमिस्ट्री पढ़ते हैं, रसायन विज्ञान पढ़ते हैं। ये है, इसमें चार कंचे लगा दिए, बीच में एक छोटा-सा मोती है—आपको नहीं दिख रहा होगा पर चार कंचे दिख रहे होंगे—ये बिलकुल मीथेन की आणविक संरचना है। CH4—चार हाइड्रोजन—फोर ऐटॉम्स ऑफ़ दी हाइड्रोजन ऐट द फोर ऐपिसेस ऑफ़ द टेट्राहेड्रन—बीच में कार्बन का अंक है। तो स्कूल जा रहे हैं, और अगर हम, इसी तरह से हम चार के (एक सुईं चाहिए) चार के, छह के, आठ के जोड़ बना सकते हैं इससे। इसमें कोई गोंद नहीं है। और अगर एक बार ये बन जाए तो आप, ये एक पिरामिड है—पिरामिड को अगर आप घन के ऊपर रखेंगे तो ये घर जैसा बन जाएगा। अगर आप चतुष्फलक, प्रिज़्म को ऊपर रखेंगे तो ये मंदिर जैसी कुछ आकृति बन जाएगी।
एक और चीज़ है, ये एक छोटा-सा एक, ये 1990 में हमलोगों ने बनाया था। सरल-सा मोटर है। नवीं-दसवीं, चाहे कोई पाठ्यक्रम हो, आपके बिहार बोर्ड का हो, चाहे सी.बी.एस.ई. हो, हर एक स्कूल, हर एक पाठ्यक्रम के अन्दर विद्युत मोटर, ये बिल्कुल...। और सामान्य घर में अगर आप देखें, मध्मम वर्ग में, बच्चे एक दर्जन जगह मोटर का इस्तेमाल करते हैं। पम्प से, पम्प चलता है, मोटर चलाता है पम्प को जिससे टंकी में पानी जाता है। पंखे के अन्दर मोटर है, कूलर के अन्दर मोटर है, फ्रिज में मोटर है, मिक्सी में मोटर है, वाशिंग मशीन में मोटर है। कोई बच्चा, सब बच्चे मोटर की थ्योरी को रट लेते हैं, परीक्षा आती है उसको उलट आते हैं। कोई बच्चा अपने हाथ से मोटर नहीं बनाता।
ये सबसे सस्ता मोटर है, सबसे मँहगी चीज़ इसमें बैटरी है। अगर बैटरी हो तो पाँच रुपए लगते हैं इस मोटर को बनाने में। अब मैं आपको दिखाता हूँ ये कैसे चलता है। बिल्कुल सरल विद्युत मोटर है। इसमें दो सेफ्टी पिन्स हैं, एक साइकिल का रबर बैंड है—साइकिल का एक टुकड़ा काटा हुआ है एक रबर बैंड का काम कर रहा है जो दोनों भी प्लस-माइनस के साथ में जाकर के जोड़ता है। शुरु से अंत तक दस मिनट लगते हैं एक बच्चे को मोटर बनाते हुए और जब बच्चे इस मोटर को चलता हुआ देखते हैं तो उनकी आँखें में चमक आती है। बच्चे कभी ये फैरेडे के जो नियम हम बच्चों को रटवाते हैं। उनकी आँखों में तब चमक आती है जब बच्चा मोटर को खुद चलाता है अपने हाथ से। और अगर पहली बार मोटर चल जाये तो उसका आनन्द ही नहीं है। द चाइल्ड हैज़ टु मेक द मोटर वर्क। तब वो खुशी तब आती है जब आप संघर्ष करने के बाद इसको चला पाते हैं। और इसमें, ये इतना अच्छा प्रोजेक्ट है कि चाहे कितनी भी आप गलती कीजिये, आप अंततः उसको सुधार कर के मोटर को चला सकते हैं। तो उसके लिए बहुत ही सुन्दर एक मॉडल ये है।
एक और मॉडल जो बाद में आया—अच्छा इसमें ये चुंबक है, बहुत सस्ते पचास-पचास पैसे के ये चुम्बक हैं, एक रुपए की ये तांबे की तार है जो मोटर वाइन्डिंग के लिए इस्तेमाल होती है। बहुत ही सरल मॉडल है। ये बहुत थोड़ा-सा बाद में आया पर ये भी, इसमें दो नियोडाइमियम के चुम्बक हैं, ये बहुत ही शक्तिशाली चुम्बक हैं—रेयर अर्थ। पीरियोडिक टेबल में जैसे Fe आयरन के लिए है, तो Nb नियोडाइमियम, रेयर अर्थ है। चीन के पास सबसे ज्यादा डेपोज़िट्स हैं रेयर अर्थस के। तो सारे-के-सारे ये चुम्बक चीन से आते हैं पर अभी ओपन ट्रेड की वजह से आप अपने शहर में इसको खरीद पायेंगे। ऑनलाइन खरीद सकते हैं , बहुत से लोग ऑनलाइन बेचते हैं इसको।
अब ये पुराना सिरिंज है, इसकी हमको सुईं से कुछ लेना-देना नहीं, इसकी बस बैरल है, ये बाहर का। अब ये दोनों चुम्बक इसके अंदर चले जाते हैं और देखिए आगे-पीछे हो रहे हैं। अब हमने क्या करा, पतला ताँबे का तार लिया, इनसुलेटेड कॉपर वायर, मोटर वायन्डिंग वाला, एक हज़ार टर्निंग्स। दोनों सिरों को छील कर एक एल.ई.डी. लगा दिया, बस। इसमें आधा घंटा लगता है, शुरु से अंत तक। बहुत ही शक्तिशाली चुम्बक है, उसके चारों ओर अदृष्य, बहुत ही बलवान चुम्बकीय क्षेत्र होगा। अब मैं इन चुम्बकों को आगे-पीछे हिलाऊँगा तो चुम्बकीय क्षेत्र आगे-पीछे हो रहा है और लाइन्स ऑफ़ फ़ोर्स कट रही हैं इस कुंडली से और इसमें मीटर पैदा हो रही है। तो बिल्कुल सबसे सरल जनरेटर।
अब ये कुछ नए तरह के, आपने ये देखा होगा जो बे-ब्लेड, आजकल बच्चे इनसे बहुत खेलते हैं। इसके अन्दर एक बेयरिंग होता है, चालीस-पचास रुपए के। अन्दर बेयरिंग होता है तो ये तो बहुत स्मूथ है। अब ये देखिए इसके अन्दर हमने हर एक में चुम्बक लगाया। वॉच, ये एक हज़ार टर्न की कोइल है और एक एल.ई.डी. लगा है। अब मैं इसको घुमाता हूँ तो आप देखिए। ये कोई बहुत कठिन चीज़ नहीं है हमारे बच्चों के लिए। जब मैं आपको ये बे-ब्लेड दिखा रहा था, अभी हाल में ही, अभी ये इस तरह का ये फ़िजिट स्पिनर है, इसको हमने चिपका दिया है एक पुरानी सी.डी. के ऊपर, चिपका दिया है। बहुत तेज़ी से घूमता है। इसको देखिये मैंने एक बार घुमाया।
स्ट्रॉ से कई सारे प्रयोग कर सकते हैं, प्लास्टिक की स्ट्रॉ से। अब ये हमने अच्छी स्ट्रॉ ली है। इसको एक तरफ़ दबा दिया है, चपटा कर दिया है। थोड़ी-सी मुलायम हो जाए और चपटी हो जाए और उसमें एक तीर जैसी एक नोक काट लेते हैं। अगर आप इधर से देखेंगे तो बिल्कुल एक ये बेबी क्रोकोडायल माउथ, एक छोटा-सा घड़ियाल का मुँह जैसा दिखाई दिखेगा आपको। ये एक अंग्रेज़ी में रीड बन जाती है, r-e-e-d जो कंपन करेगी। मैं इसको मुँह में रखूँगा और साँस बाहर फूकूँगा। बहुत ही बुलंद आवाज़ इससे निकलती है। हमने ये भी देखा कि जितनी लंबी स्ट्रॉ थी, उतना ही सुर नीचे था और जितनी छोटी होती गई, उतना सुर ऊँचा, ऊँचा, ऊँचा और ऊँचा होता गया। और जितनी छोटी स्ट्रॉ थी, अभी देखिए इसका बहुत ही, बहुत हाई फ्यू पे था, हाई पिचट्ड।
बच्चे हर चीज़ को एक नए नज़रिए से देखते हैं। और मैं, मैं ज़िंदा इसीलिए हूँ कि मैं हमेशा बच्चों से सीखता हूँ। बच्चों को सिखाने की तो बात बहुत अलग है। और इंसान तभी, कोई शिक्षक तभी ज़िन्दा रह पाता है जब वो रोज़...। चिल्ड्रेन आर बोर्न डिसओबिडियंट और ये बहुत बड़ी उम्मीद है दुनिया के लिए, समाज के लिए। अगर आप बच्चों से कहें कि बाँए को चलो तो वो दाँए को जाते हैं। गाँधीजी ने भी डिसओबिडियंट मूवमेंट की ही बात करी थी। और बच्चे तो जन्मजात डिसओबिडियंट होते हैं और ये बहुत बड़ी उम्मीद है। और जब बच्चे हमारे केंद्र में आते हैं हर रोज़ बच्चे हमको कुछ नया सिखा के जाते हैं। ये एक चीज़ है जो मैं अब आपको दिखा रहा हूँ जो मैंने बच्चों से सीखी है कि ये बहुत हाई आवृति वाली जो आवाज़ है।
ये एक, एक स्ट्रॉ ले ली। इसके दोनों सिरे हमने चपटे करके टेप कर दिए, दोनों सील हो गए। फिर कैंची से लेकर यहाँ पर एक छोटा-सा छेद काट दिया। एक टॉप राइट–बॉटम लेफ्ट, बिल्कुल डायमेट्रीकली ओप्पोज़िट। टू छोटे-छोटे छेद बना दिए। फिर हमने इसको डबल करा और इसके दोनों कौने काट दिए तो इसके अन्दर एक बर्फ़ीनुमा एक छेद बन जाएगा, जिसके अन्दर एक कोई स्ट्रा जा सकती है, ढीली। इसमें हमने एक छेद बनाया, ये छेद क्यूँ बनाया? अगर इसको बंद करेंगे और फूँकेंगे तो एयर विल कम आउट एट राईट एंगलस्। लंबवत हवा इसमें से बाहर निकलेगी। ये इसके अंदर चली जाती है, इसको बंद कर देते हैं, इसके ऊपर ले आए।
ये इसका एक बहुत छोटा-सा रूप ये है। एक और, एक तीसरा आप देखिए, स्ट्रॉ का ये। ये एक स्ट्रॉ ले ली, झाड़ू की सींक। झाड़ू की सींक इसके अन्दर डाल दी, बीच में, मध्य में डाल दी। फिर दो उंगल छोड़कर आधा कट बाँए को, आधा कट दाँए को। अब ये दोनों हाथ जो हैं, इस तरह से स्वीवल होते हैं। इनका मूवमेंट जारी है। अब इन दोनों को आप पास में ले आइए, एक त्रिकोण जैसा बन जाता है। और थोड़ा-सा टेप, तो त्रिकोण जो है अपनी स्थिति पर बरकरार रहेगा। अब बिल्कुल ये बन गया। लाल टेप लगाया, ट्रांसपैरेंट होता तो दिखाई नहीं देता। अब इसको पानी में रखेंगे तो आप देखिए क्या हो रहा है। बहुत ही सुन्दर एक स्प्रिंकलर बन जाता है। एक सेंट्रीफ़्यूज जैसा है। जब हम किसी चीज़ को घुमाते हैं तो उसकी प्रवित्ति होती है बाहर जाने की। जब इसको घुमा रहे हैं तो पानी इन दोनों प्लांटस में से चढ़ रहा है और दोनों कट्स से बाहर निकल रहा है। छोटे बच्चों के लिए, तीसरी के बच्चे, चौथीं के बच्चे गमलों के अन्दर पानी दे रहे हैं। जो पहले कदम हों विज्ञान में, वो एकदम रोचक हों, बच्चों को ऐसा लगे कि विज्ञान दुनिया का सबसे सुंदर विषय है।
हमारी वैबसाइट पर तैंतीस पम्प, मैं आपको एक और पम्प दिखाता हूँ। तैंतीस—दुनिया में कोई भी तैंतीस पम्प नहीं बनाता। ये एक पम्प है जिससे बच्चे गुब्बारा फुला सकते हैं। अब इसमें गुब्बारा रखा और हवा भरनी है। ऐसे करते रहेंगे तो गुब्बारा फट जाएगा। एक और स्लोगन है – द बेस्ट थिंग अ चाइल्ड कैन डू वित अ टॉय इस टू ब्रेक इट। बच्चे खिलौने क्यों तोड़ते हैं? वो अतिरेकी नहीं हैं, टेरररिस्ट नहीं हैं। वही जिज्ञासु हैं। वो जानना चाहते हैं कि इसके पेट के अन्दर क्या है? तब तक तुष्टि नहीं होती उनकी। जब तक जड़ तक नहीं पहुँचते, तह तक नहीं पहुँचते। अच्छा खिलौना ऐसा होना चाहिए जो बच्चों को आमंत्रित करे, कि बेटा आओ मुझे तोड़ो।
और अब ये साइकिल का टयूब है। साइकिल की टयूब कें अन्दर पुरानी फिल्म रील की डिब्बी चली जाती थी। इसके अन्दर छेद करके एक टेप लगा दिया, अभी देखिए। हवा बाहर निकल रही है। साँस अंदर खींचूँगा, नहीं हो सकता। तो ग्रीन लाइन, रेड लाइन – एक तरह का ये वैल्व बन जाता है। एक वैल्व यहाँ पर है। तो ये दो वैल्व हैं। और ये बिल्कुल एक धौंकनी का काम करता है। अगर आप घर पर ऐसा पम्प बना पाएँ जिससे गुब्बारा फुला सकें। बिल्कुल आई.इस.ओ. प्रमाणित पम्प है।
ये पी.वी.सी. का कोई भी पाइप, दस इंच लम्बा पी.वी.सी. का पाइप। अब जैसे जब चना मुरमुरा खाते हैं तो इस तरह की पुंगी बनाते हैं, या कोण बनाते हैं। हमने भी एक कोण बनाया। अब ये देखिए यहाँ तक, यहाँ पर लाल निशान है। यहाँ पर काट देंगे तो इसका जो इंटरनल डायामीटर है बिल्कुल उसके बराबर का हो जाएगा। और वही हमने करा।
अब ये बहुत ही अच्छा एक रॉकेट लॉन्चर है। अब मैं देखिए इसको फेंकुँगा। हम कई बार भौतिकी में ये पढ़ाते हैं कि अगर ऐसे फेंकेंगे तो सबसे ज़्यादा दूर नहीं जाता। ऊपर फेंकेंगे तो मेरे सिर पर ही आकर गिरेगा। किस कोण के ऊपर हम इसको एम करें कि सबसे ज़्यादा ये दूरी ये तय करे। अब आप ये देखिए। बच्चे के लिए बहुत ही मधुर चीज़ है बनाने के लिए। बहुत सस्ती चीज़ है। बड़ा आनंद के साथ खेल सकते हैं इसके साथ।
एक ये भी बहुत, ये देखिए ये बिल्कुल फ्रूटी के जो डब्बे हैं। अब आपको मालूम है, फ्रूटी का जो डब्बा शायद पन्द्रह रुपए का मिलता होगा। अभी आपने गौर करा है फ्रूटी में, कितनी फ्रूटी आती है एक फ्रूटी के डब्बे में? दो सौ मिलीलीटर, इसके ऊपर लिखा रहता है। अगर आप इसकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई को नापेगें, उनको गुणा करेंगे, तो किसी भी आयतन, किसी भी पैरालल पाइप का आपको मिल जाएगा। तो ये लगभग दो सौ होता है, दो सौ एम.एल. का। अगर इसके अन्दर पानी भरेंगे तो दो सौ मिलीलीटर का बहुत ही सुन्दर ये माप है। इसी तरह से अगर हमने इसको आधे में काटा है, आधे में काटा है तो ये सौ मिलीलीटर का बहुत हे अच्छा वो बन जाता है। ये पचास का बन जाता है। तो हम तरह-तरह के नपनाघट बना सकते हैं फ्रूटी के डब्बों से। अब ये बहुत ही, अब ये देखिए, इसको मैं पानी से भरता हूँ। ऊपर लबालब पानी भरा हुआ है। कितना पानी आया है? सौ मिलीलीटर। (पानी पिया) अब मैंने नपनाघट लिया और इसको अपनी जेब में रख सकता हूँ। तो बच्चों का, बच्चों की प्रयोगशाला उनकी जेब में हो। अगर दिन भर बच्चे ऐसे करेंगे तो उनको आयतन क्या होता है, वॉल्यूम क्या होता है, उसकी एक बहुत अच्छी अनुभूति उनको मिलेगी।
माचिस से कई तरह के खिलौने। ये देखिए, छोटा-सा माचिस का प्रयोग है। माचिस है और डोरी है, बिल्कुल ये रेलवे ट्रैक, रेलवे का ट्रैक जैसा दिखता है। ये स्टेशन है, यहाँ से शुरु हुई। और ये यहाँ पर आ गई। पीछे नहीं जाती। अब इस बच्चे ने कोई खरगोश चिपकाया है तो ऐसा लगेगा खरगोश कुलाँचे मरता हुआ आगे जा रहा है। या छिपकली दीवार के ऊपर चढ़ रही है।
ये खाली माचिस है, इसमें दो पेपर क्लिप लगाएँ हैं। ये एक पेपर क्लिप है और पेपर क्लिप दो मिलीमीटर आगे निकला हुआ है। टेप कर दिया है कि खिसके ना, दोनों तरफ़। इसके अन्दर हमने बस एक, एक डोरा डाला है। डोरा पिरोया है। डोरे के दोनों सिरे पर एक-एक स्ट्रा लगा दिया है। और ये जो इसकी दराज़ है, इसको बाहर निकालेंगे तो ज़्यादा वज़न एक तरफ़ होगा। दराज़ को अन्दर करेंगे तो वज़न कम हो जाएगा। अब इसको बहार निकाल दिया। अब इसको तान करके अगर हम छोड़ेंगे तो इसके बहुत ही, वेरी नाइस मूवमेंट्स ऑफ़ दिस। बिल्कुल थिरथिराते हुई ये नीचे आती है। क्यूँकि एक तरफ़ पूरा वज़न है। एक तरफ़ घर्षण है और गुरुत्वाकर्षण है इन दोनों के। उल्टा करेंगे, ये देखिए सातवीं का बच्चा जो सातवीं के बाद कभी नहीं पढ़ा। उसका बिल्कुल मौलिक डिज़ाइन है।
बच्चों को हम कहते हैं, नॉट जस्ट कंज्यूमर्स ऑफ़ नॉलेज, दे आर कृएटर्स ऑफ़ नॉलेज। हमें डर लगता है बच्चों से मौलिक सवाल पूछते हुए, हमको डर लगता है। हम उनको बिल्कुल वही रटे-रटाए जवाब रटवाते हैं कि जो उनको किताब में, परीक्षा में उलट सकें। पर ये देखिए, बहुत ही सुंदर खिलौना है। पचास पैसे लगते हैं इसको बनाने में। ये कोई भी तार लेकर के हमने पेंसिल पर बाँधा, एक छोटी-सी स्प्रिंग बना ली और स्प्रिंग को दोनों तरफ़ से खींचेंगे तो स्पाइरल बन जाएगा। और ये स्ट्रॉ के टुकड़े हैं, मोती नहीं हैं, स्ट्रॉ के छोटे-छोटे से टुकड़े हैं, रंग-बिरंगे। और ये इस तरह से, बिल्कुल एक स्पाइरल स्नेक जैसे ये आगे-पीछे, ये नीचे आते हैं।
ये छठीं के बच्चे, एक म्युनिसिपलशाला के, म्युनिसिपल स्कूल के बच्चों ने इसका डिज़ाइन करा। ये चुम्बक है, अँगूठी जैसा चुम्बक है। ये एक छल्ला है ये जो आपके सामने बोतल रखी है, इससे काट कर के छल्ला बना सकते हैं। एक कोई बोतल हो तो छह-सात छल्ले। इसमें दो छेद करे और इस छेद के अन्दर हमने साइकिल की स्पोक को डाल दिया, दो चुम्बक डाले इसके अन्दर और दूसरे तरफ़ भी एक छेद है उसमें से पिरो दिया। बस इतना-सा ये हो गया, बाद में देखेंगे। छठीं कक्षा के बच्चों का मौलिक डिज़ाइन है। सबसे ज़्यादा हमारे डाउनलोड, हमारे खिलौनों के चाइना से होते हैं। अब आप एक वेबसाइट पर जा सकती हैं – अरविन्द गुप्ता टॉयज़ इन चाइना! दे हैव जस्ट सेट उप अ वेबसाइट इन चाइना, सौ हमारे विडियो उन्होंने चाइनीस में डब करे। शायद एक दिन ये खिलौने चीन में बनेंगे और भारत में बिकेंगे।
ये बहुत एक परंपरागत खिलौना है, पर इसमें ज्ञान भी बहुत कुछ विज्ञान है। बहुत सरे हमारे परंपरागत खिलौनों के अन्दर विज्ञान समाहित होता था। अब ये एक तरह का नट है, एक्रोबैट कहेंगे। इसका शरीर और इसका सिर है जो वो दोहरे हैं, उनके बीच में एक झिरी है। यहाँ पर हमने कन्धा लगाया, एक सुईं डाली, धागे में गाँठ लगाई, एक और गाँठ। दोनों तरफ़ एक-एक गाँठ है बस। तो उससे एक तरह के ये हिन्जेस बन जाते हैं, कब्ज़े बन जाते हैं। अब ये बीच में झाड़ू की सींक है, इसको हम हिलाएँगे। बहुत गतिशील, दोनों हाथ से घुमाएँगे तो ऐसा लगता है बिल्कुल फ्लाईंग मैन, बिल्कुल सेंटरीफ़्यूज।
एक जॉन होल्ट की एक किताब है, चिल्ड्रेन लर्न विद्आउट बियिंग टॉट, बिना सिखाए बच्चे बहुत कुछ सीख जाते हैं। अगर हम उनके लिए ऐसी परिस्थिति पैदा करें। ये हमलोग का बहुत एडल्ट एर्रोगेन्स है कि हम बच्चों को सिखाते हैं। बच्चे तो सीखने के लिए ही पैदा हुए थे। अब बच्चे ये एकदम सीख जाएँगे कि हम तेज़ से घुमा रहे हैं तो इसके हाथ ऐसे हैं। इसमें कहीं-न-कहीं एक कोई बल समाहित है – सेंट्रीफ़्यूगल फ़ोर्स।
ये एक बहुत मशहूर है एक टरबाइन, इसको आज पूरी दुनिया में दुर्गा के टरबाइन से। पूना यूनिवर्सिटी चार सौ ग्यारह एकड़ का परिसर है। कभी एक ज़माने में ब्रिटिश गवर्नर का सम्मर रेसिडेंस होता था। बम्बई में बहुत गर्मी होती थी तो वो पूना आ जाते थे। उस पूरे परिसर में केवल एक स्कूल है – विद्यापीठशाला जिसको कर्वे शिक्षण संस्थान, महर्षि कर्वे के नाम पर संचालित करती है। बिल्कुल म्युनिसिपलशाला जैसी है, ढाई हज़ार बच्चे पढ़ते हैं। तो हमने पहले दिन निश्चित करा कि हम इस स्कूल के अन्दर एक विज्ञान का क्लब चलाएँगे। कोई और कारण नहीं, हमारा नेबरहुड स्कूल है। हर हफ़्ते हमारे, हमारे, हमारे सेंटर के अन्दर बम्बई से बच्चे आते थे। अमीर स्कूलों के बच्चे आते थे। हमने कहा ये दीया तले अँधेरा। हमारे पूरे परिसर के अन्दर एक ही स्कूल है। वहाँ पर एक बच्ची थी जिसका नाम था दुर्गा जेटली। झोपड़-पट्टी में रहती थी। दुर्गा चार घरों में बर्तन माँजती थी अपनी माँ के में, तब स्कूल आती थी। उसने अपने—बहुत ही होशियार बच्ची थी—उसने अपने स्कूल के प्रोजेक्ट में इसको बनाया। आज पूरी दुनिया में – दुर्गा टरबाइन। एक बोतल ली, पेंदा काट दिया। पोली है, खाली। इसका ढक्कन है, ढक्कन में हमने दो सेफ्टी पिन लगाईं, टेप कर दिया। यहाँ पर सुईं है और एक टरबाइन। अब अगर इसको मैं पानी के अन्दर ऊपर-नीचे करूँगा तो बोतल में अन्दर पानी जाएगा, उसमें से हवा एक्सपेल होगी। हवा इस छेद में से निकल कर के और टरबाइन को चलाएगी। ये दुर्गा का टरबाइन है। नवीं के अन्दर दुर्गा ने उस स्कूल के अन्दर दूसरे नम्बर पर आई। बहुत ही ज़हीन लड़की थी। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने दुर्गा के टरबाइन की फोटो छापी और कहा ये बहुत होनहार बच्ची है, इसकी मदद कीजिए।
एक अद्भुत खिलौना है, 1928 में एक गणतज्ञ ने इसका इजाद किया था। आर्थर स्टोन जिनका नाम था। कागज़ का बना हुआ है। इसको आप घुमाइए तो चार चित्र, एक-के-बाद-एक करके, तितली–मेंढक–साँप–चील। तितली–मेंढक–साँप...ये जो हम ‘दिन-रात’ बनाते थे, उससे बिल्कुल अलग है। चार चित्र एक क्रम में आते हैं और फिर हम चारों चित्रों के अन्दर एक कहानी पिरो सकते हैं। कि तितली कीड़े-मकोड़ों को... मेंढक खाते हैं, मेंढक को साँप खाते हैं, साँप को चील खाती है। फिर एक तरह का भोजन चक्र बन जाता है।
और अगर हमारे पास इस तरह का A-4 साइज़, अगर कागज़ हो। एक तरफ से सफेद हो, एक तरफ से रंगा हुआ हो। एक स्केल और पेंसिल। कोई कैंची नहीं, कोई गोंद नहीं। तीन मिनिट के अन्दर आप इसको फोल्ड कर सकते हैं। अब विज्ञान में तो तमाम चक्र हैं, सीक्वेन्सस् हैं, साइकल्स् हैं, तो उनको डिपिक्ट करने के लिए एक बहुत सुन्दर-सा मॉडल है ये। छोटा-सा अगर, इससे आप छोटे लिए बना सकते हैं, एक फ्लेक्सीगन। पर ये अद्भुत है कि कागज़ इस तरह से घूम सकता है, बगैर फटे हुए। ये अपने अन्दर एक अचरज की बात है। इसी तरह से ये एक चौदह पन्नों की ये अंतहीन किताब है–फोरटीन पेज अनएन्डिंग बुक। एक-दो-तीन-चार पाँच-छह-सात-आठ नौ-दस-ग्यारह-बारह तेरह-चौदह। ये इसका अंतिम पृष्ठ है और किताब दुबारा, एक-दो-तीन-चार पाँच-छह-सात-आठ नौ-दस-ग्यारह-बारह तेरह-चौदह, बिल्कुल जादुई लगता है। दो मिनिट लगते हैं इसको बनाने में। हर बच्चे को कोई कहानी बेहद पसंद होती है जिसको वो पचास बार सुनकर भी दोबारा सुनना चाहता है। तो बच्चे एक अपनी प्रिय कहानी लें, उसको चौदह खंडों में बाँटें और उसके ऊपर चित्र बनाएँ। तो हर एक बच्चा अपने लिए एक बिल्कुल चलायमान, एक डायनैमिक मूविंग पिक्चर बुक बना सकता है। जो घर लेके जा सकता है।
कागज़ की हम बहुत सरे छोटे-छोटे सी चीज़ें बनाते हैं। और एक ये बहुत, आधा ये A-4 साइज़ का कागज़ है। आधे A-4 साइज़ के कागज़ से एक बहुत ही सुन्दर ये, बहुत कम बायोलॉजी के मॉडल्स हैं। पर ये एक स्केल मॉडल है स्केलेटन का जिसके लिए ये आधा A-4 साइज़ का कागज़ लगता है। इसके लिए आप स्कल बना सकते हैं इसमें, रिब केज है, पेल्विस है, टिबिया-फिबिया। इंसान के शरीर के अंदर दो सौ अलग-अलग तरह की हड्डियाँ होती हैं। अब चौथीं-पाँचवीं के बच्चों को कैंची चाहिए, थोड़ा-सा गोंद चाहिए और एकदम एक स्केल्ड मॉडल बच्चे इसका बना सकते हैं। बहुत ही, ये मेरे ख्याल से मुझे ये बहुत ही अच्छा मॉडल लगता है क्यूँकि आज जिस तरह का बच्चों के दिमाग के अन्दर ज़हर...। बच्चों से ये पूछिए कि ये किसका स्केलेटन है? नर का है कि मादा का है? किसी को कोई अंदाज़ नहीं। ये एक मुसलमान का कंकाल है? ये हिंदू का है? इसाई का कंकाल है? आप समाज में जो बहुत गहरे सवाल हैं, उनको भी इनसे टटोल सकते हैं। उसके लिए एक बड़ा सुन्दर-सा मॉडल है ये ऐसा करने के लिए।
जितने भी अखबार के कागज़ हैं, अखबार पत्रिकाओं, पुरानी पत्रिकाओं, उनको आप स्कवेयर काट लीजिए। सबसे सस्ता कागज़ ये है। कई लोगों ने अपनी पूरी ज़िदगी एक स्कवेयर पर बिताई है। एक नब्बे साल के जापानी थे जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी के अन्दर चालीस हज़ार ओरिगैमी के मॉडल। दो हज़ार केवल किताबों में आए हैं बाकी सब म्यूज़ियम के अन्दर एयर कंडीशंड, ह्युमिडिटी कंट्रोल्ड रूम में बंद हैं। अगली पीढियाँ उनको डॉक्यूमेंट करेंगीं! जैसे कोई आर्टिस्ट होता है, अपने कैनवस पर पेन्ट करता है। वो बाहर जाते थे, कुत्ता कैसे बैठा है, उसको फ़ोल्ड करते थे। कौआ कैसे उड़ रहा है, उसको फ़ोल्ड करते थे।
अब ये बहुत ही, इसका हमने एक बड़ा त्रिकोण बन गया। छोटा त्रिकोण बन गया। और इसको हम, ये बचपन में मैं बनाता था। बहुत ही मेरा प्रिय खिलौना था। थोड़ा-सा फाड़ा, आगे, ये खरगोश बन गया। तीस सेकंड नहीं लगते खरगोश बन जाता है। खरगोश के कान, आगे के पैर। पैरों को पकड़ा, पूँछ को पकड़कर आगे-पीछे करेंगे। अब कोई भी चीज़ अगर गति होती है उसके अन्दर, चलायमान होती है तो बच्चों को ज़्यादा आकर्षित करती है। आवाज़ करती है, उड़ती है तो बहुत ज़्यादा आकर्षित करती है। तो एक उस तरह का खिलौना है।
इसी तरह से इस चैकोर को लेकर के हम एक पक्षी बना सकते हैं। जापान में पिछले तीन सौ बरस से बच्चे इस पक्षी को बना रहे हैं। सिर्फ एक चौकोर लगता है और आपकी दस अँगुलियाँ। न कैंची, न गोंद, कुछ नहीं लगता। दिस हैज़ स्टुड इट्स प्लेस फ़ॉर थ्री हंड्रेड इयर्स – अनमैचड, अनबीटबल।
आप कभी ये भी अंदाज़ लगाइए कि हमारे बच्चे कितना समय स्कूल में गुज़ारते हैं, कितने साल गुज़ारते हैं और कोई भी सार्थक चीज़ नहीं सीखते। तो फिर हमने क्या करा, ये वही लिया और उसके अन्दर, वही पक्षी लिया और उसके अन्दर एक छोटी-सी एक, एक पंखा लगा दिया उसकी पूँछ में। चिड़िया वही है। एक रिफ़िल का टुकड़ा है जिसके अन्दर एक, एक पिन घूम रही है। अब आप ये देखिए, बिल्कुल एक फैन-टेल्ड पंखे वाली चिड़िया बन जाती है।
दो-तीन चीज़ें आपको और दिखाता हूँ। एक हमलोग साठ खिलौने बनते हैं टेट्रापैक के। ये फ्रूटी के डब्बे जो हैं, अगर कभी आपने गौर से देखा होगा तो फ्रूटी के, फ्रूटी के डब्बों में पाँच तहें होती हैं, जिसमें तीन तहें प्लास्टिक की होती है, एल्मुनियम की होती है, कार्डशीट की होती है। तो उनको हम रीसाइकिल नहीं कर सकते। बहुत ही मुश्किल होता है। किसी लैंडफील्ड में पाँच सौ साल तक पड़े रहेंगें। एल्मुनियम को तो जंक भी नहीं लगती। ये बहुत सुन्दर बटुआ बन जाता है इनका। देखिए दो इसके अन्दर पॉकेट हैं, कुछ पैसे इनके अन्दर रख सकते हैं। पैसे-सिक्के रख सकते हैं और बाहर इसके अन्दर वेल्क्रो लगी है तो बहुत बढ़िया बटुआ बन जाता है। और इस बटुए को आप जेब में रख सकते हैं। अपने बच्चों से बनवाइए। बच्चे कुछ पैसे अर्जित कर रख सकते हैं इसको बेच कर के! ये बहुत सुन्दर-सा बटुआ है।
और इसको बहुत ही सरल-सा बनाने का तरीका है। ये छोटे-से आपको फ्रूटी के डब्बे से दिखा रहा हूँ। ये इसका एक फ्लैप काट दिया पूरा। इसकी दीवारों को अन्दर धँसा दिया। और इनको डबल करा हमने। और अन्दर की जो दीवारें हैं दोनों, इनको स्टेपल कर दिया। तो आपको दो इसमें पॉकेटस् दिखाई दे रही हैं। यहाँ पर आप बटन लगा दीजिए, वेल्क्रो लगा दीजिए, कुछ लगा दीजिए। ये छोटा-सा आपका बटुआ बन जाता है।
ये अन्त के लिए रखी थी। बहुत ही ये, सबसे अच्छा मॉडल जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ। और ये मॉडल क्या है? ये एक अंध बच्चों के लिए स्लेट है, इसका नाम है टचिंग स्लेट। ये वेल्क्रो है। वेल्क्रो से आपलोग परिचित होंगे। दो पट्टियाँ होती हैं नायलॉन की, एक में हुक्स होते हैं, एक में लूप्स होते हैं। ऐसे चिपक जाते हैं। इसमें केवल हुक्स इस्तेमाल करें हैं। तो मिलियंस ऑफ़ नायलॉन हुक्स की मेरी स्लेट है। और ये मेरा छोटा-सा पेन है। अब पेन क्या है, बिल्कुल एक जैसे मछली पकड़ने वाली बंसी है। ये एक क्रैंक है, तार को मोड़ कर के, साइकिल स्पोक को मोड़ के क्रैंक बना दिया है एक। घिरनी है, घिरनी को भी रबर का टुकड़ा है, उसको थोड़ा गाउज आउट कर दिया है तो जगह हो गई। और इसके अन्दर क्या लिपटा है? ऊन लिपटा है। ये देखिए। अगर मैं हैंडल को घुमाऊँगा तो सारा ऊन लिपट रहा है। और ऊन में बहुत सारे रेशे होते हैं। अब ये देखिए, कोई भी नेत्रहीन बच्चा इससे एक चित्र को, कोई चित्र बना सकता है। ऊन जो है वेल्क्रो में चिपक जाता है। और बच्चे जो देख नहीं सकते, उनकी अँगुलियों में एक विशेष तरह की एक स्पर्श की शक्ति होती है। वो स्पर्श से वो इसको महसूस कर सकते हैं।
अन्त में मैं आपको एक छोटी-सी कहानी सुनाता हूँ, उसके साथ मैं अन्त करूँगा। इसका नाम है टोपी शंकर की...हमलोग अखबार से बहुत सारी टोपियाँ बनाते हैं। इसका नाम है टोपी शंकर की कहानी। अगर आपने टोपी शंकर का नाम न सुना हो, तो टोपी शंकर एक पानी के जहाज़ के कप्तान थे। अब पानी का जहाज़ समुद्र में बहुत धीमी गति से जाता है। किसी देश में उसको जाने में महीनों लग जाते हैं, हफ़्तों लग जाते हैं। और इस जहाज़ के अंदर बहुत सारे मुसाफ़िर थे। पहले दो-चार दिन तो उनको बहुत आनंद आता है। पहली बार समुद्र की यात्रा कर रहे होते हैं। पर दो-चार दिन के बाद में पूरा अथाह अनंत समुद्र दिखाई देता है। न कोई ज़मीन का टुकड़ा न कोई पेड़। सब-के-सब ऊब जाते हैं, बोर हो जाते हैं, सी-सिक हो जाते हैं।
टोपी शंकर बहुत ही होशियार कप्तान थे। तो उन्होंने सारे मुसाफ़िरों को डेक पर बुलाया। उनसे कहा, आप दिनभर नाचिए-गाइए, आपका दिल बहलेगा। और मैं आपके लिए अच्छे भोजन पानी का प्रबन्ध करूँगा। टोपी शंकर के पास में एक संदूक था जिसमें तमाम तरह की टोपियाँ थीं। और वो इस जलसे के अन्दर, इस पार्टी में हर रोज़ शरीक होते थे। पहले दिन वो एक बड़ी-सी टोपी पहनते थे, बिल्कुल एक छतरीनुमा टोपी है कि अगर कप्तान डेक के ऊपर खड़ा हो तो उसे धूप, उसको बारिश से बचाए। जब रात को मुसाफ़िर सो रहे होते थे तो टोपी शंकर उसी टोपी को लेते थे और उसके अन्दर एक और मोड़ देते थे। पर अगले दिन वो एक नई टोपी पहनते थे। अब ये बिल्कुल एक फायर-ब्रिगेड वाले इस तरह के डिज़ाइनर कैप पहनते हैं। तो बहुत खतरनाक, जलते हुए घर में किसी को ले कर के आते हैं तो ऊपर से मलबा गिरे तो स्पाइनल कॉर्ड सुरक्षित रहे, रीढ़ की हड्डी। तो ये डिज़ाइनर कैप पहनते हैं। सेकंड इज़ अ फायरमैनस् कैप। दूसरी रात को उसको एक और मोड़ देते थे और तीसरे दिन एक नई टोपी। ये एक शिकारी टोपी है। एक्सप्लोररस् कैप, अडवेंचररस् कैप, कैप नम्बर थ्री। और तीसरी रात उसको दो अन्य मोड़ और ये जो है, ये बहुत मशहूर टोपी है।
मैं पूना से आता हूँ जहाँ पर फिल्म इंस्टिट्यूट है, फिल्म आर्काइव्ज़ हैं। और बम्बई बहुत ज़्यादा दूर नहीं है। जहाँ पर हमलोग हज़ार फिल्में हर साल बनाते हैं। आपने कोई भी बम्बई बॉलीवुड की फिल्म देखी है तो उसमें जितने भी पुलिसमैन हैं, सिपाही हैं, तो वो हमेशा इस तरह की टोपी पहनते हैं। मराठी में इसको पांडु कैप कहते हैं। और ये बहुत ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति की टोपी है। चार टोपियाँ हैं – फर्स्ट इज़ द ह्यूज अम्ब्रेला कैप, सेकंड इज़ द फायरमैनस् कैप, थर्ड इज़ द शिकारी कैप, फोर्थ इज़ दिस पांडु कैप। हम ये ना भूलें कि टोपी शंकर आखिर एक जहाज़ के कप्तान थे। तो ये उनका जहाज़ था।
तो सब लोग यात्रा का बहुत आनंद ले रहे थे। समय कैसे बीत गया, मालूम नहीं। अचानक काली बदली छा जाती है, चकाचौंध बिजली कड़कती है और धुँआधार बारिश होती है। समंदर में हेल आ जाता है, तूफ़ान आ जाता है। और जहाज़ इस तरह के हिचकोले खाता है। ऊँची-ऊँची लहरें। अब पीछे से एक लहर आती है और जहाज़ के पिछले हिस्से को ऐसा थपेड़ा मारती है कि जहाज़ का पिछला हिस्सा टूट जाता है। अब सरे मुसाफ़िर जो हैं बिल्कुल जो उनकी सारी खुशी थी वो गम में बदल जाती है एकदम। चेहरे पे हवाइयाँ छूटने लगती हैं। हम तो पिकनिक मनाने आए थे और यहाँ हमारा जहाज़ दो टुकड़ों में टूट गया है। एक और लहर आती है और अगले हिस्से को ऐसा थपेड़ा मारती है कि अगला हिस्सा भी तोड़ देती है। जहाज़ के दो टुकड़े, अब जहाज़ समुन्दर की गर्त में डूबने लगता है। अब ये तिकोना हिस्सा जहाज़ में, इसको ब्रिज कहते हैं। अब एक उर्दू में एक कहावत है कि मुसीबत अकेले नहीं आती, बला अकेले नहीं आती छप्पर फाड़ कर आती है। अब एक तीसरी लहर है जो इस ब्रिज को थपेड़ा मारती है और इसको भी उड़ा देती है। अब जहाज़ के बिल्कुल टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। टोपी शंकर का जहाज़ डूब जाता है। उसका संदूक जिसमें तमाम टोपियाँ थीं, वो भी डूब जाता है। कप्तान टोपी शंकर लुट जाता है। उसके पास बचता है तो एक फटी-पुरानी एक लाइफ जैकेट बचती है।
श्री अरविंद कुमार गुप्ता (पद्मश्री), जन-विज्ञान विशेषज्ञ, अन्वेषक, लेखक, अनुवादक, शिक्षाविद और पुस्तक-प्रेमी हैं। कबाड़ से जुगाड़ कर खिलौने बनाने में उन्हें महारत हासिल है। देश के हर बच्चे तक उसकी भाषा में उम्दा किताबें पहुँचाना श्री गुप्ता का सपना रहा है।
64 वर्षीय श्री गुप्ता बरेली में पले-बढ़े और 1975 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से स्नातक किया। बतौर अभियंता वे टेल्को, पुणे में पाँच साल कार्यरत रहे। इस बीच 1978 में उन्होंने छुट्टी लेकर होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया तथा वास्तुविद् लॉरी बेकर की अगुआई में कम-लागत के भवन निर्माण पर केरल में काम किया। पाठ्यक्रम से अलग आम चीज़ों द्वारा खेल-खेल में बच्चों व बड़ों को विज्ञान का बोध कराने के इस अनुभव ने श्री गुप्ता के जीवन को नई दिशा दी।
विज्ञान, साहित्य एवं शिक्षा की बेहतरी में वे जुटे रहे हैं। उन्होंने ‘मैचस्टिक मॉड्ल्स एंड अदर साइंस एक्सपेरिमेंट्स’ नामक गतिविधियों की एक अनूठी किताब लिखी। स्पैस्टिक सोसाइटी ऑफ़ नॉर्थ इंडिया के साथ निरंतर कार्यशालाएँ की और कपार्ट के विज्ञान कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने में बहुमूल्य योगदान दिया। बच्चों के लिए 1980 में दूरदर्शन पर उनके द्वारा प्रस्तुत धारावाहिक ‘तरंग’ बहुत चर्चित रहा।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सलाहकार के रूप में उन्होंने ‘तोतो चान’, ‘दिवास्वप्न’ व ‘गे-नेक’ जैसी उत्तम किताबों को प्रकाशित करवाया। भारत ज्ञान विज्ञान समिति के माध्यम से ‘जिसने उम्मीद के बीज बोए’ व ‘सदाको और कागज़ के पक्षी’ जैसा साहित्य उपलब्ध कराया, और ‘खतरा स्कूल’ जैसी किताब को अपने खर्च पर प्रकाशित और वितरित किया जो मौ जूदा स्कूली शिक्षा पर तीखा कटाक्ष है।
2003 से 2014 तक श्री गुप्ता ने पुणे की प्रतिष्ठित संस्था आयूका के बाल विज्ञान केंद्र की बागडोर सँभाली। उन्होंने इस दौरान 1,500 विज्ञान प्रयोग तैयार किये जिनमें से 1,100 को लघु वीडियो में तब्दील किया। ‘टॉयज फ्रॉम ट्रैश.कॉम’ पर 20 भाषाओं में ये वीडियो मुफ़्त में डाउनलोड किये जा सकते हैं। इसी वेबसाइट के लिए उन्होंने कई भाषाओं की लगभग 5,500 किताबें भी डिजिटाइज की हैं।
पिछले चार दशकों में श्री गुप्ता लगभग 3,000 स्कूल-कॉलेजों के छात्रों को संबोधित कर चुके हैं। वे विज्ञान पर आधारित 25 किताबों का लेखन व 270 किताबों का हिन्दी अनुवाद कर चुके हैं। 2010 में उनके द्वारा दिया गया टेड टॉक ‘टर्निंग ट्रैश इंटू टॉयज़ फॉर लर्निंग’ दुनिया के सर्वाधिक चर्चित टॉक में से एक है।
विज्ञान तथा शिक्षण जगत में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें मैरी मक्कर्डी अवार्ड 2001, विज्ञान की लोकप्रियता के लिए आईएनएसए द्वारा इंदिरा गांधी पुरस्कार 2008, थर्ड वर्ल्ड एकेडमी ऑफ सांइस रीजनल प्राइज 2010 एवं पद्मश्री सम्मान 2018 प्रमुख हैं।